Double Entry System of Accounting in Hindi | Tally Prime | ( हिन्दी मे )
हम सभी जानते हैं कि पहले
काउंटिंग मैन्युअल होता था यानी हिसाब-किताब बही खातों में हाथ से लिखे जाते थे और अब यह कंप्यूटर
के सहायता से होता है परंतु उसके मूल तत्वों में कोई बदलाव नहीं हुआ है |
व्यापार या व्यवसाय में
जब भी कोई वित्तीय यानी फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन होता है तो उनका रिकॉर्ड रखने के
लिए हमें उन्हें कहीं लिखना होता है संसार भर में इसके लिए अलग-अलग पद्धतियां हैं जिनमे सबसे महत्वपूर्ण और Scientifically Proven है - डबल एंट्री सिस्टम यानी दोहरा लेखा
प्रणाली जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है इसमें प्रतेक लेन-देन दो खातों को प्रभावित करता है |
जैसे हमने बैंक से ₹10000
नगद निकले यहां पर दो खाते प्रभावित हुए हैं
नगद यानी कैश और बैंक |
चित्र में दो खाते
प्रभावित हुए हैं देने वाला Bank Account है और लेने वाला
Cash Account
है | और दोनों पक्षों में लिखी गई जो राशि है वह
समान है |
1. खाता क्या होता है
तो इसका जवाब हम आपको अगली पोस्ट में विस्तार से देंगे |
2. कौन सा खाता डेबिट
होगा और कौन सा क्रेडिट होगा इसके कुछ नियम है जिन्हें हम आपको गोल्डन रूल्स ऑफ़
अकाउंटिंग में आगे बताएंगे |
Double Entry system मे प्रयोग होने वाले शब्द और उनके अर्थ -
Creditor ( लेनदार ) - वह व्यक्ति
या संस्था जो किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को उधार माल या सेवाएं बेचती है यह रुपए
उधार देता है श्रण दाता या लेनदार यानि क्रेडिटर कहलाती है लेनदार को भविष्य में
श्रेणी से धनराशि प्राप्त होना होती है |
संक्षेप में जब हम किसी
से उधार माल खरीदते हैं तो वह हमारा क्रेडिटर कहलाता है |
जैसे - पारस ने राहुल से ₹10000 का उधार माल खरीदा |
यहां पारस की बुक में
राहुल क्रेडिटर कहलाएगा |
Debtor ( देनदार ) - वह व्यक्ति
या संस्था जो किसी अन्य व्यक्ति या संस्था से उधार माल या सेवाएं खरीदती है या रुपये
उधार लेती हैं श्रणी या देनदार यानि Debtor कहलाती हैं देनदार को भविष्य में एक निश्चित दिन यानी एक निश्चित अवधि के बाद
पैसा चुकाना होता है |
संक्षेप में जब हम किसी
को उधार माल बेचते हैं तो वह हमारा Debtor कहलाता है |
उदाहरण के लिए - अनिल ने
मोहन को ₹5000 का उधार माल बेचा यहां अनिल के बुक्स में मोहन डेटर
कहलाएगा और मोहन की बुक में अनिल क्रेडिटर कहलाएगा |
Capital ( पूंजी ) - व्यापार का
स्वामी जो रुपया माल या संपत्ति व्यापार में लगता है उसे पूंजी कहते हैं | व्यापार
में लाभ होने पर पूंजी बढ़ती है और हानि होने पर पूंजी घटती है |
Note : - एकाउंटिंग में ध्यान
रखें की व्यापार और व्यापारी को अलग-अलग माना गया है | इसलिए व्यापार में ऑनर
द्वारा लगाई गई पूंजी व्यापार की लायबिलिटी मानी जाती है यानि owner द्वारा लगाई गई पूंजी व्यापार के लिए कर्ज है |
उदाहरण के लिए विकास ने ₹20000 नकद और ₹10000 के माल से कपड़े का व्यापार प्रारंभ किया
तो ऐसी स्थिति में उसकी व्यापार में लगी हुई इस पूंजी की राशि ₹30000 होगी |
Owner ( स्वामी ) – वह व्यक्ति
या व्यक्तियों का समूह जो व्यापार में आवश्यक पूंजी लगते हैं , व्यापार का संचालन
करते हैं व्यापार की जोखिम सहन करते हैं तथा लाभ और हानि के अधिकारी होते हैं
व्यापार के स्वामी कहलाते हैं |
यदि किसी व्यापार का
स्वामी या मालिक एक व्यक्ति है तो वह एकाकी व्यापारी यानी प्रोपराइटर कहलाता है और
यदि मालिक दो या दो से अधिक व्यक्ति हैं तो साझेदारी यानी पार्टनर्स कहलाते हैं पर
यदि बहुत से लोग मिलकर संगठित रूप से कंपनी के रूप में कार्य करते हैं तो वह उसे
कंपनी के अंशधारी यानी शेरहोल्डर्स कहलाते हैं |
Drawing ( आहारण ) - व्यापार का
स्वामी अपने निजी खर्च के लिए समय-समय पर व्यापार में से जो रुपया या माल निकलता
है वह उसका आहरण या निजी खर्च कहलाता है |
Assets ( संपत्ति ) - व्यापार या
व्यवसाय की ऐसी समस्त वस्तुएं जो व्यापार या व्यवसाय के संचालन में सहायक होती हैं
और जिन पर व्यवसाय का स्वामित्व होता है संपत्ति कहलाती है |
यह दो प्रकार की होती है – 1. स्थाई संपत्तियां 2. चालू संपत्तियां
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